“जिसका कोई नहीं, उसका खुदा होता है” परिजनों की गैरमौजूदगी में मोहल्लेवासियों ने उठाई अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी

क्रान्ति नगर के पी. चलपती राव का निधन, अपार्टमेंट के रहवासियों ने मिलकर किया अंतिम संस्कार और अस्थि विसर्जन

महानदी में अस्थि विसर्जन के लिए पहुंचे अभिजीत मित्रा रिंकू

यश विश्वकर्मा @ बिलासपुर। “जिसका कोई नहीं, उसका खुदा होता है” इस कहावत का जीवंत उदाहरण छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में देखने को मिला। विद्या नगर इलाके के क्रांति नगर स्थित पूजा अपार्टमेंट में रहने वाले पी. चलपती राव का निधन हो गया। 85 वर्षीय चलपती राव दक्षिण भारतीय ब्राह्मण थे और उनका कोई परिजन या संतान नहीं थी। उनके अंतिम दिनों में “अकेलापन” उनका साथी था, लेकिन उनकी अंतिम विदाई में मोहल्ले के रहवासियों ने मानवीयता का बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत किया।

विसर्जन के पूर्व अस्थि के साथ अभिजीत मित्रा रिंकू

अपार्टमेंट के निवासी अभिजीत मित्रा (रिंकू) ने बताया कि चलपती राव कई वर्षों से अपार्टमेंट में अकेले रह रहे थे। वे शांत और धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति थे, लेकिन उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था। उनके निधन की खबर सुनकर अपार्टमेंट के लोग एकत्रित हुए और आपसी चर्चा के बाद सभी ने मिलकर उनके अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी उठाई।
मोहल्ले के रहवासियों ने मिलकर चलपती राव का 23 अक्टूबर को दोपहर में भारतीय नगर स्थित मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार विधिपूर्वक किया। उनका दाह संस्कार हिन्दू रीति-रिवाजों के साथ किया गया। जिसमें सभी अपार्टमेंट के निवासियों ने सहभागिता निभाई। इस नेक कार्य में प्रमुख योगदान देने वालों में शैलेश मिश्रा और मनीष गुप्ता का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा। इन दोनों ने चलपती राव की अंतिम यात्रा की पूरी व्यवस्था की और सम्मानपूर्वक उनका अंतिम संस्कार कराया।

अस्थि का विधि विधान से पूजा अर्चना करते अभिजीत मित्रा रिंकू

अंतिम संस्कार के बाद चलपती राव की अस्थियों का विसर्जन भी पूरी धार्मिक परंपराओं के साथ किया गया। रहवासियों ने 23 अक्टूबर को शाम में शिवरीनारायण स्थित महानदी के तट पर पहुंचकर उनकी अस्थियों का सम्मानपूर्वक विसर्जन किया। यह आयोजन न केवल मोहल्ले के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणादायक घटना बन गया है, जहाँ सामूहिक सहयोग और मानवता की भावना का बेहतरीन उदाहरण पेश किया गया। इस घटना ने स्पष्ट कर दिया कि जब समाज में सहयोग और सद्भाव की भावना होती है, तो किसी भी व्यक्ति का जीवन या मृत्यु अकेली नहीं होती। चलपती राव के अंतिम संस्कार ने इस बात को फिर से साबित किया कि इंसानियत का रिश्ता सबसे बड़ा होता है।

कोरोना काल में विसर्जन के लिए अस्थि को मटकी में रखकर बांधते हुए अभिजीत मित्रा रिंकू व अन्य

कोरोना योद्धा अभिजीत मित्रा, अंतिम संस्कार के मसीहा

विद्या नगर निवासी अभिजीत मित्रा जिन्हें लोग प्यार से “रिंकू” कहते हैं, वे कोरोना महामारी के दौरान एक ऐसा साहसिक कदम उठाया, जिसे लोग आज भी याद करते हैं। जब कोविड-19 के खौफ के कारण परिजनों ने अपने मृतकों का अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया, तब अभिजीत ने अपने दम पर इस नेक कार्य को आगे बढ़ाया। उनके पास कोई टीम नहीं थी, फिर भी उन्होंने 1373 लोगों का अंतिम संस्कार किया, जो कि एक असाधारण मानवता का उदाहरण है। अभिजीत ने बिना किसी प्रचार या मदद के यह सेवाकार्य जारी रखा। उनका मानना है कि अंतिम संस्कार करना एक धार्मिक और मानवीय कर्तव्य है, जिसे निभाना उनका फर्ज है। इस सेवा के लिए वे हमेशा तत्पर रहते हैं, चाहे समय कोई भी हो। अभिजीत की यह सेवा लोगों के दिलों में हमेशा के लिए अंकित हो गई है और वे कोरोना योद्धा के रूप में जाने जाते हैं। उनका यह समर्पण समाज के लिए एक प्रेरणा है।